गुरुवार, 30 मार्च 2017

मरता क्या ना करता ?

मैने अपने पिछले दोनों ब्लॉग में से सबसे पहले वाले में INDIA के 2nd developing phase की बात की थी।
यूँ तो इन बातों को अभी 4 साल भी नहीं हुये। पर आज का ये ब्लॉग मुझे ऐसा लगता है उसी ब्लॉग को आगे बढ़ा रहा है।आज के हालात देख कर ऐसा लग रहा है के 4 साल पहले के हालात और आज के हालातों में कोई ख़ास फर्क नहीं है।  मैं बात कर रहा हूँ किसान की ।



किसानों से जुडी समस्याएँ जिनसे पूरा देश वाकिफ है पर उनका सही समय पे सही तरीके से निवारण न होते हुए सबसे ज्यादा उपेक्षा का शिकार किसान ही है। यूँ तो हमारे देश में एक से बढ़कर एक बुद्धजीवी हैं, जो किसानों के लिए स्कीमे बनाने में पीछे नहीं रहते। और हमारे काबिल नेतागण इसे भुनाने में पीछे नहीं रहते।

पर इन सब में पीछे रहता है तो वो है किसान, जिसके लिए ये स्कीमे हैं उससे ही नहीं पूछा जाता के भाई तुम लोगो के लये ये स्कीमे बना रहे हैं इसमें कोई बदलाव या कोई और मांग चाहते हो।

वहीं दूसरी ओर किसान इन बातो से बेपरवाह दिन रात लगा रहता है तो बस खेत बोने-सींचने में। कड़ी मेहनत के बाद  पता है उसको क्या मिलता है ?  इन्तजार...केवल  इन्तजार। अपनी ही मेहनत के पैसे लेने के लिए उसे सालो इन्तजार करना होता है। पर यहाँ गौर करने वाली बात ये है के पैसा तो उसको साल से पहले मिलना नही है तो वो इतने खेती कैसे करे ? फसल कैसे लगाए ? तो यहाँ हमारी काबिल सरकारे लेके आती है कुछ स्कीमे, जैसे - kisan credit card, land development loan etc.. अब सबसे विचित्र बात देखिये कैसी विडम्बना है।  वो एक पुरानी कहावत हे ना - "मरता क्या ना करता ?"
तो ये कहावत यहाँ सच होती दिखती है। एक किसान जिसका पैसा परोक्ष-अपरोक्ष रूप से सरकार के नियंत्रण में है उसको ये सरकारे क़र्ज़ देती हैं और फिर कहती हैं के ये आप लोगो के लिए है बस निम्न ब्याज पर।
किसान की मजबूरी लेना ही होगा। कर्ज लिया। फिर सालो बाद उसका खेती का पैसा आया वो कर्ज चुकाया ब्याज के साथ। सरकार ने सालो उसका पैसा अपने पास रख उससे कमाया, फिर उसको जो क़र्ज़ दिया उससे कमाया। मतलब सीधा और साफ़ है समझ में आ जाए तो। सरकार को मतलब बस उसके खजाने भरने से है। 


पहले तो समय से किसान को उसका पैसा नहीं मिलता। फिर किसान का हितेषी बनने का नाटक करते हुए उसको क़र्ज़ दिया जाता है 7% पर जिसमे 4 % सब्सिडी बाद में आती है। इस पूरे छलचक्र में जो बड़ा किसान है वो तो झेल जाता है। पिसता है तो मझौला और गरीब किसान।

पहले तो शून्य = 0  बैलेंस पे खाते खुलवाये। फिर उनको आधार अपडेट करके सामान्य में बदल दिया जाता है।
और इन सबके बाद आखिरी चोट मारी जाती है खाते में min. बैलेंस की, withdrawl slip से कोई पैसा न देने की, जो पैसा दिया जाए वो एटीएम के द्वारा ब्रांच में ही स्वाइप करके दिया जाए।

सबसे पहली बात- क्या हर एक किसान (छोटा-गरीब ) 1000 रूपए अपने खाते में बचाये रख सकता है ?
और मुझे किसी सरकारी रिकॉर्ड की जरुरत नहीं, मैं भी एक किसान परिवार से हूँ, मुझे अपने क्षेत्र के गाँवो का हाल पता है जनाब। जहाँ तक़रीबन 60-70% लोगो के पास एटीएम ही नहीं है।

मैं ये नहीं कहता के इंडिया को digitalise मत करो।  समय की जरुरत है।  हमे होना होगा। पर जनाब किसानों की हालात बद से बदतर करके नहीं। किसानों की हालत बदलकर। 

सरकारे AC केबिन में बैठ कर स्कीम तो लॉन्च कर देतीं हैं, पर उनको ये पता होता नहीं है के क्या वाकई में उन स्कीमो से ground level पे बेनिफिट हुआ या नहीं।
जब उद्योगपतियों से feedback लिया जा सकता है उनके लिए लांच की गयी schemes का, तो किसानों से क्यों नहीं ?

और ये हाल तब है INDIA के किसान का जब यहाँ की 65% आबादी खेती पे निर्भर है। और दुःख की बात ये है के जिस देश को सबसे ज्यादा नेता किसान परिवारों ने दिए, उन किसानो की बात देश के हुक्मराणो के सामने कट्टरता से रखने वाला कोई नेतृत्व फ़िलहाल नज़र नहीं दिखता।



किसानों की समस्याओ-दुखो का पिटारा इतना बड़ा है के लिखने के लिए ये पेज  और पढ़ने के लिए आपका समय कम पड जाये। पर मेरे दोस्त हमे लिखना भी होगा, हमे सुनना-समझना भी होगा और समय की मांग को भांपते हुए  हमे कहना भी होगा.... के अगर देश का किसान ही सुखि नहीं है तो क्या मतलब बनता है बुलेट ट्रैन का और क्या मतलब बनता है digitalisation का जब किसान के खाते में पैसा ही नहीं हे लेन-देन को।

'बस एक छोटी सी तो बात है साहब समझने को, किसान चाहता है तो बस अपनी मेहनत का पैसा समय से'।






“The farmer is the only man in our economy who buys everything at retail, sells everything at wholesale, and pays the freight both ways.” – John F. Kennedy


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