शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

3-Phase Developing India

इंडिया ....
नाम  सुनते  ही एक ऐसे  देश  की  छवि  सामने उभरती  है।
जहां  तरह -तरह  के वनस्पति , जीव -जंतु और कई धर्मो के
लोग एक साथ रहते हैं।
जहाँ हरे भरे खेत खलिहान हैं, जहाँ लोगो  में आज  भी
प्रेम-भाव, आदर-सम्मान है।
जहां आपको प्रकर्ति के दिए हर मोसम का
नज़ारा देखने को मिल जाएगा।

आजादी के बाद से निरंतर विकास इस देश की
पहचान बन गया है।
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी फोज इसी देश की है,
डॉक्टर्स-इंजिनियर  की संख्या में बस दो मुल्क पीछे ही रह गया है।
चाँद तक तो हम बहुत पहले ही पहुँच चुके हैं।
अब कोशिश जारी है मार्स तक पहुँचने की।

यहाँ की मिट्टी  ने भगत सिंह, आज़ाद, एस.सी.बोस, जैसे वीरसपुतों को जन्मा है।
वहीं जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शाश्त्री, इंद्रा गाँधी जैसे नेताओं को भी जन्म दिया।

अपने कर्म और निष्ठा के कारण पूरे विश्व में अपनी ख्याति
रखने वाले महात्मा गाँधी भी इसी मिटटी की उपज हैं।

वहीँ दूसरी ओर टाटा, बिरला, अम्बानी, भारती जैसे लोगो ने भारत को विश्व इस्तर पे एक नयी पहचान दी है।

         ये तो बात रही हमारी आजादी के बाद के एक फेज की ( 1st phase of developing india ).      


अब बात आती है दूसरे फेज की ( 2nd phase of developing india ).

हमे आज़ाद हुए तक़रीबन 68 साल हो गए हैं। पर सवाल ये उठता है।

क्या हम वाकई आज़ाद हुए हैं ?
क्या हकीकत में हमे हमारा हक मिला है ?
क्या 1947  का गरीब और विकास में पिछड़ा भारत
अपने विकास की गति को ठीक गति से चला पाया ?
क्या यहाँ काले-गोरे, अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं ?
क्या हम लोग वाकई में अपने पुरखो से मिली संस्कृति के
साथ इन्साफ कर पाए हैं ?

तो खुद से पूछिये.... जवाब मिल जाएगा।

कहने को तो ये देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो चूका था,
पर हकीकत यही है के हम आज भी गुलाम हैं,
बस फर्क इतना है के जब हम गोरो के गुलाम थे,
और अब हम अपनों क गुलाम है।

बात ये नहीं है के हमारे ऊपर राज कौन कर रहा है, बात ये है के हमे आदत हो चुकी है गुलाम रहने की।

कहने को तो हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहते हैं,
पर बस कहने को और पढने को,
आज यहाँ बस एक ही राज रह गया है, राजनैतिक राज।
जिसमे से नैतिकता ख़त्म होके बस राज बचा है, जो ये लोग
इस देश की आवाम पर कर रहे हैं।
बिलकुल बड़े बुजुर्गो की कहावत की तरह "जिसकी लाठी उसकी भेंस ", तो समझ तो आ ही गया होगा के किसकी लाठी है और कौन भेंस है।

पर गोर करने वाली बात ये है,
क्या ये लोकतंत्र राज है?
क्या हम आज़ाद इसीलिए हुए थे ?
क्या इस मिटटी के वीर सपूतों ने अपना बलिदान इसीलिए दिया था के कुछ सियासत गर्द इस देश को अपनी मुट्ठी में रखे और जैसे चाहें वैसा इसे चलायें।

तो साफ़-साफ़ सीधे अक्षरों में कहना चाहूँगा,
वो तो ऐसा भारत चाहते थे जो कभी इंडिया न बने।
क्यूंकि वो भली भाति जानते थे की इंडिया कभी आज़ाद
नहीं हो पाएगा, इंडिया तो अंग्रेजो की देन है।
इसीलिए वो आज़ाद भारत चाहते थे, ना की गुलाम इंडिया

आधा काम वो कर चुके, हमे गोरो से आज़ाद करा कर।

पर बाकी का काम हम सबको करना होगा, इन भ्रष्ट नेताओं,
अपने आपको जनप्रतिनिधि कहने वाले चोरो से खुद को और
इस देश की आवाम को असली आजादी दिला कर।
अमीर और गरीब के बीच जो फर्क गहराता जा रहा है उसे पाट कर। 
गाँवो को शहरो से जोड़कर। 

हिन्दू-मुस्लीम-सिख-इसाई आपस में हैं भाई-भाई,
बचपन में किताबो में पढ़ा था, पर इसे हकीकत का
अमली जामा पहना कर हम इसी इंडिया को
उस भारत के समक्ष लाके खड़ा कर देंगे, जिसके निर्माण की
कल्पना हमारे पूर्वजों, हमारे शहीदों,और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों
ने की थी।

जिन्होंने अपने लहू को पानी की तरह बहा दिया,
ताकि हमारा आज आज़ाद हो,
हम किसी के फिरसे गुलाम न बने।

  
और इसी बदलाव के साथ शुरआत होगी
इंडिया के 3rd developing phase ki 
( तीसरे विकास की )।

जो की बहुत बेहतर होगा इस समय के इंडिया से।